
शिव कृपा देने वाला व्रत
हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला होता है। प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है। इस व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान के भक्त सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूतजी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगा, हर तरफ अन्याय और अनाचार का बोलबाला होगा और मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोक को प्राप्त होगा।
ऐसे करें पूजा नष्ट होंगे पाप
सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे। यह व्रत अति कल्याणकारी है इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी। सूत जी ने बताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। उन्हें यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाई। प्रदोष व्रत विधान में सूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।
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