
माता छाया का सम्मान बना कारक
धर्मग्रंथो के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया जब सूर्य के संपर्क में आई तो उनके गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ था। कहते हैं कि जब शनि देव छाया के गर्भ में थे तब वे भगवान शंकर की भक्ति में इतनी ध्यान मग्न थीं की उन्हें अपने खाने पीने तक सुध नहीं थी। इसी बात का प्रभाव उनके अजन्मे पुत्र पर पड़ा और उसका वर्ण श्याम हो गया। जन्म के पश्चात शनि के श्यामवर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया की ये उनका पुत्र नहीं हो सकता है। तभी से शनि के मन में अपने पिता के लिए शत्रु भाव उत्पन्न हो गया था।
मां के सम्मान के लिए मांगा वरदान
इसके बाद शनि देव ने अपनी साधना और तपस्या द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य की भांति शक्ति प्राप्त की और शिवजी ने शनि देव को वरदान मांगने को कहा, तब शनि देव ने प्रार्थना की कि युगों युगों में मेरी माता छाया की पराजय होती रही है। उन्हें मेरे पिता सूर्य द्वारा अनेक बार अपमानित किया गया है, अतः माता की इच्छा हैं कि मैं अपने पिता से उनके अपमान का बदला लूं और उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बनूं। इस पर भगवान शंकर ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में शनिदेव का सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा, और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहेंगे।
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